Wednesday, April 9, 2025
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खूबसूरत फूलों वाले लैंटाना पौधे से दुनिया के सभी देश त्रस्त हैं !

NTI (मोहन भुलानी ) : वर्षो पहले यह यह घास जैसा पौधा शायद ही कहीं दिखता था, लेकिन आज यह इतना आम हो गया है कि इसे अनदेखा करना मुश्किल है। इसका नाम है लैंटाना—एक झाड़ीनुमा पौधा, जिसके रंग-बिरंगे खूबसूरत फूल देखते ही मन मोह लेते हैं। 1888 में इसी पौधे के नाम पर एक कस्बे का नाम “लैंटाना” रखा गया था। करीब 100 साल पहले यह पौधा एक से डेढ़ डॉलर में बिका करता था। धीरे-धीरे इसकी लोकप्रियता बढ़ी और यह दुनिया भर में फैल गया। लेकिन आज स्थिति यह है कि भारत सहित दुनिया के 60 से ज्यादा देशों में लैंटाना एक बड़ी समस्या बन चुका है।

भारत में लैंटाना का कहर

भारत के हज़ारों गांवों में लैंटाना कैमारा (Lantana Camara) नामक यह पौधा लोगों की जिंदगी को मुश्किल बना रहा है। इसके खूबसूरत फूलों के पीछे एक कड़वा सच छिपा है—यह जहरीला है। जानवर इसे खाते नहीं, क्योंकि इसकी पत्तियां फूड पॉइजनिंग का कारण बनती हैं। इंसानों के लिए भी यह खतरनाक है; खासकर इसके बीज बच्चों की जान तक ले सकते हैं। जंगलों में यह इतना फैल चुका है कि इसके नीचे कोई दूसरा पौधा पनप ही नहीं पाता। इससे जंगल की मूल वनस्पतियां खत्म हो रही हैं, जिसका असर वन्यजीवों पर भी पड़ रहा है। भोजन की तलाश में जानवर जंगलों से बाहर निकल रहे हैं, जिससे इंसानों और वन्यजीवों के बीच टकराव बढ़ रहा है।

लैंटाना का प्रसार

लैंटाना कैमारा मूल रूप से मध्य और दक्षिणी अमेरिका का पौधा है। कुछ दस्तावेजों के अनुसार, 1870 के दशक में ब्रिटिश और पुर्तगाली अधिकारी इसे भारत लाये । उत्तर में काठगोदाम और दक्षिण में गोवा के रास्ते यह पौधा देश के पारिस्थितिकी तंत्र में फैलने लगा। आज यह 1500 मीटर की ऊंचाई वाले हिमालयी क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के तटों तक हर जगह मिलता है। पक्षी और तितलियां इसे पसंद करते हैं, क्योंकि यह उनके लिए एक आदर्श मेजबान पौधा है। पक्षी इसके बीजों को दूर-दूर तक फैलाते हैं, जिससे यह लगातार नए इलाकों में अपनी जड़ें जमाता जा रहा है। आज यह पौधा दुनिया के 35% हिस्से पर छा चुका है।

जलवायु का प्रभाव

अमेरिका और यूरोप में लैंटाना की 50 से ज्यादा किस्में मौजूद हैं, लेकिन वहां यह बड़ी समस्या नहीं है। सर्दियों में यह पौधा मुरझा जाता है और बसंत में फिर से खिलता है। लेकिन गुनगुनी जलवायु वाले देशों, जैसे भारत में, यह साल भर हरा-भरा रहता है और बेकाबू होकर फैलता है। रिजर्व फॉरेस्ट, नेशनल पार्क और जंगलों में इसकी घनी झाड़ियां हर जगह दिखती हैं।

लैंटाना से छुटकारा: कितना मुश्किल, कितना खर्चीला?

लैंटाना को हटाने के लिए दुनिया भर में कई तरीके अपनाए जा रहे हैं। कुछ तरीके बेहद महंगे हैं, तो कुछ जोखिम भरे। भारत में एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र से लैंटाना को पूरी तरह साफ करने का खर्च लगभग 14 लाख रुपये आंका गया है। इस हिसाब से पूरे देश से इसे हटाने में करीब 10 अरब डॉलर (लगभग 83,000 करोड़ रुपये) खर्च होंगे। यह राशि भारत के पर्यावरण और जलवायु मंत्रालय के सालाना बजट से 25 गुना ज्यादा है।

हालांकि, कुछ उम्मीद की किरणें भी दिख रही हैं। 2020 में उत्तराखंड के फॉरेस्ट रिसर्च रेंज ने लैंटाना हटाने का एक सफल प्रयोग किया। एक हेक्टेयर जमीन से इसे हटाने में 7-8 लाख रुपये खर्च हुए। इसके बाद उस क्षेत्र को समतल कर वहां 20 प्रजातियों के 10,000 पौधे लगाए गए। दो साल तक लगातार देखभाल और मैनुअल सफाई के बाद नतीजे सकारात्मक रहे। नए पौधों की अच्छी ग्रोथ के कारण लैंटाना अब उस क्षेत्र में दोबारा नहीं उग पा रहा है।

लैंटाना की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ कितनी भारी पड़ सकती है। यह पौधा पक्षियों और कीट-पतंगों के लिए फायदेमंद हो सकता है, लेकिन इंसानों और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए यह एक बड़ा खतरा है। हमें अपने परिवेश और मूल पौधों से प्यार करना होगा, उनकी रक्षा करनी होगी। अगर हम ऐसा नहीं करेंगे, तो लैंटाना जैसी समस्याएं बढ़ती रहेंगी। आइए, अपने पर्यावरण को बचाने के लिए कदम उठाएं, ताकि आने वाली पीढ़ियों को एक स्वस्थ और संतुलित प्रकृति मिले।

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