कच्छ के एक गांव में कुछ लोग सोने की तलाश में थे. वो एक जगह पर सोना खोज रहे थे, तभी उन्हें हड़प्पा सभ्यता के बेशकीमती अवशेष मिले. जब उन्होंने यह बात पुरातत्वविदों को बताई तो वो भी हैरान रह गए. लेकिन यहां से कई शानदार चीजें मिली हैं.
गुजरात का कच्छ जिला जैव विविधताओं से भरा है. यहां हजारों साल पुरानी सभ्यताओं के अवशेष मिल चुके हैं. फिलहाल हजारों साल पुराने हड़प्पा सभ्यता के अवशेष ने सभी को हैरान कर दिया है.
गांव के लोगों ने धोलावीरा हड़प्पन साइट के पुराने गाइड जेमल मकवाना को इस बारे में जानकारी दी. उन्होंने देखा तो वो भी हैरान हुए. क्योंकि वहां मिले अवशेष धोलावीरा की हड़प्पा सभ्यता की तरह दिखाई देने वाले अवशेष थे.
ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी से आए पुरातत्वविद
जेमल मकवाना ने तुरंत इस बारे में ASI के पूर्व एडीजी और पुरातत्वविद अजय यादव जो फिलहाल ऑक्सफोर्ड स्कूल ऑफ आर्कियोलॉजी के रिसर्च स्कॉलर है. उनसे संपर्क किया. फिर अजय यादव और प्रोफेसर डेमियन रॉबिन्सन दोनों गुजरात के कच्छ पहुंचे. उन्होंने इस पुरातत्व साइट का जायजा लिया.
दोनों ने बताया कि नई जगह की प्राचीन साइट की बनावट धोलावीरा से मिलती-जुलती है. जगह में और थोड़े पत्थर को हटाकर देखा तो वहां बहुत सारे अवशेष मिले. ये सभी हड़प्पा युग के थे. अजय यादव ने कहा कि पहले इस जगह को बड़े-बड़े पत्थरों का ढेर समझकर गांव वालों ने नजरअंदाज कर दिया गया था.
प्राचीन साइट का नाम रखा गया मोरोधारो
गांववालों को लगता था कि यहां मध्यकालीन किला और दबा हुआ खजाना हैं. लेकिन जब हमने इसकी जांच की तो हमें हड़प्पाकालीन बस्ती मिली. यहां करीब 4,500 साल पहले एक पूरी सभ्यता का शहर था. इस जगह की खोज हमने इस साल जनवरी में की इसका नाम मोरोधारो है. गुजराती में इसका मतलब कम नमकीन और पीने योग्य पानी है.
अजय के अनुसार, खुदाई से ढेर सारे हड़प्पाकालीन बर्तन मिले हैं, जो धोलावीरा में पाए जाने वालों अवशेषों से मिलते हैं. ये साइट हड़प्पाकाल के (2,600 -1,900 ईसा पूर्व) के बाद के चरण यानी 1,900-1,300 ईसा पूर्व की लगती है.
पुरानी जांच में भी बस्ती होने की उम्मीद जताई गई थी
दोनों पुरातत्वविदों का कहना है कि विस्तृत जांच और खुदाई से और भी अहम जानकारियां मिलेंगी. इस हेरिटेज साईट को लेकर हमारी सबसे महत्वपूर्ण खोज यह है कि मोरोधारो और धोलावीरा दोनों ही समुद्र पर निर्भर हैं. क्योंकि यह साइट से रेगिस्तान के बहुत करीब है. यानी सालों पहले यह जगह समंदर की वजह से दफ्न हुआ होगा. बाद में रेगिस्तान बन गया होगा.
धोलाविरा के अवशेष जब मिले तब 1967-68 में पुरातत्वविद् जेपी जोशी ने धोलावीरा के 80 km के दायरे में एक सर्वेक्षण किया था. उन्होंने आसपास में एक और हड़प्पा स्थल होने की आशंका जताई थी, लेकिन तब कोई ठोस सबूत नहीं मिला था.
इसके बाद 1989 और 2005 के बीच धोलावीरा उत्खनन के दौरान, पुरातत्व विशेषज्ञों ने भी आसपास के इलाके का दौरा किया, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा. अब जब गांव वालों ने खजाने की लालच में खोज शुरू की तो एक बेशकीमती हड़प्पन युग के अवशेष मिले.