Saturday, December 14, 2024
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उत्तराखंड की कामधेनु बद्री गाय, पशुपालकों को बनाएगी आत्मनिर्भर, कवायद तेज

अधिक पौष्टिक दूध देने वाली उत्तराखंड की बद्री गाय को दुधारू बनाने की कवायद तेज हो गई है. इसको लेकर उत्तराखंड पशुपालन विभाग राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के तहत बद्री गायों के संरक्षण और संवर्धन क्या कार्य शुरू किया है. जिसके पहाड़ के पशुपालकों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो सके. वहीं उत्तराखंड की कामधेनु कहे जाने वाली बद्री गाय के दूध को पहचान पूरे देश दुनिया में मिल सके.

अपर निदेशक पशुपालन विभाग कुमाऊं मंडल उदय शंकर ने बताया कि कुमाऊं मंडल पशुपालन विभाग राष्ट्रीय गोकुल मिशन योजना के तहत बद्री गायों का संरक्षण और संवर्धन करने का काम कर रहा है. जिसके तहत बद्री गायों के दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ाई जा रही है. जिसके तहत अल्मोड़ा और बागेश्वर जनपद के पशुपालकों के 2663 बद्री गायों को चिन्हित किया गया है. जिनकी दूध उत्पादन क्षमता प्रतिदिन ढाई लीटर से अधिक है.

बद्री गाय पशुपालकों को बनाएगी आत्मनिर्भर 

उन्होंने बताया कि इन गायों का मिल्क रिकॉर्डिंग किया जा रहा है, जहां अच्छे दूध और अच्छे नस्ल की गायों को पशुपालन विभाग क्रय कर उनका चंपावत जनपद के नरियाल गांव में संरक्षण और संवर्धन किया जाएगा. जहां अच्छे नस्ल की गायों से बद्री बुल तैयार कर उससे बद्री का ही सीमन लिया जाएगा.पहाड़ की कामधेनु बद्री गाय अब पहाड़ के पशुपालकों के लिए नई उम्मीद बन रही है.

दूध की उत्पादन क्षमता कम होने के चलते पहाड़ के पशुपालकों का इस पहाड़ी गाय पालन से मोहभंग हो गया था. लेकिन अब सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएं और पशुपालन विभाग के प्रयासों से बद्री गाय की नस्ल में सुधार होगा. जहां दूध का उत्पादन क्षमता में भी वृद्धि हुई है. यही नहीं पशुपालन विभाग पहाड़ के पशुपालकों को बद्री गाय पालने के लिए प्रोत्साहित भी कर रहा है.जिससे पहाड़ की कामधेनु इस गाय के दूध की पहचान पूरे देश दुनिया में बने.

योजना के तहत पशुपालन विभाग 90% बद्री गाय की बछिया पैदा करने का भी सीमन भी तैयार कर रहा है. दावा किया जाता है कि आम गायों की तुलना में बद्री गाय का दूध अधिक पौष्टिक होता है और इसका दूध कई बीमारियों के लिए रामबाण माना जाता है. वहीं दूध से बने घी में ए-2 प्रोटीन और दूसरे पोषक तत्व अधिक मिलते हैं. इसलिए घी की मार्केट में भी डिमांड भी हैं.

पहाड़ की बद्री गाय उत्तराखंड की एक देशी गाय की प्रजाति है जिसे कामधेनु गाय का दर्जा मिला है. यह गाय हिमालय में प्राकृतिक चारा और जड़ी बूटियों की पौधे और झाड़ियों को चरती है. इसलिए इसके दूध का उच्च औषधीय महत्व है. जानकार बताते हैं कि बद्री गायों में रोग प्रतिरोधी क्षमता अधिक होने के चलते यह गाय शायद ही कभी बीमारी होती है.

बद्री गाय उत्तराखंड की पहली पंजीकृत मवेशी नस्ल है, जिसे राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR) द्वारा प्रमाणित किया गया है. साल 2019 की गणना के अनुसार उत्तराखंड में बद्री गाय की संख्या करीब 988,000 थी. बद्री गायों की संख्या में अधिक वृद्धि हो, इसके लिए सरकार कई तरह की योजनाएं भी चला रही है. जिससे कि पहाड़ के पशुपालक बद्री गाय पालन से अपनी आर्थिक स्थिति को भी मजबूत कर सकें.

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